भारत में इलेक्ट्रिक बसों की बिक्री में तेजी की उम्मीद, जानिए क्या है केयरएज रेटिंग्स की रिपोर्ट
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री लगातार बढ़ रही है। ईवी सेगमेंट में सबसे ज्यादा दो पहिया वाहन बिकते हैं। इसके बाद थ्री व्हीलर, पर्सनल और लाइट गुड्स कमर्शियल व्हीकल और बस का नंबर आता है। सरकार की नीतियों से अब इलेक्ट्रिक बसों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। वित्त वर्ष 2024 में 3644 ई-बसें बेची गई है। आने वाले 2-3 साल के दौरान इनकी संख्या 17,000 यूनिट तक हो सकती है। यह ग्रोथ लागत में कमी, बेहतर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और सरकार की मददगार नीतियों के कारण हो संभव हो सकती है। आइए, इस खबर को विस्तार से जानें।
15 प्रतिशत तक पहुंच सकती है ई-बसों की हिस्सेदारी
केयरएज रेटिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इलेक्ट्रिक बसों का बाजार अपने प्रारंभिक दौर में है। वित्तीय वर्ष 2024 में ई-बस पंजीकरण सिर्फ 4% है। हालांकि, साल दर साल इस क्षेत्र में लगभग 81% की वृद्धि देखी गई है, जिसका श्रेय सरकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचे में निवेश को दिया जा सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्ट्रिक बसों की बिक्री में अपेक्षित वृद्धि के साथ-साथ 2026-27 तक इनकी बाजार हिस्सेदारी 15 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। इसके साथ ही, पारंपरिक डीजल और पेट्रोल बसों की हिस्सेदारी में भी कमी आने की उम्मीद है। एक दशक पहले जहां इन बसों का हिस्सा 97-98 प्रतिशत था, वहीं अब यह 90 प्रतिशत तक गिर चुका है।
सरकार की योजनाओं से मिल रहा बढ़ावा
ई-बसों की बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार ने पीएम ई-ड्राइव (पीएम इलेक्ट्रिक ड्राइव क्रांति इन इनोवेटिव व्हीकल एन्हांसमेंट) और FAME (फास्ट अडॉप्शन और मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) जैसी योजनाएं शुरू की हैं, ताकि देश में इलेक्ट्रिक बसों को बढ़ावा दिया जा सके। साथ ही, कई राज्य सरकारें और परिवहन निगम अब जीसीसी (ग्रोस कॉस्ट कांट्रैक्ट) मॉडल के तहत इलेक्ट्रिक बसों के लिए टेंडर जारी कर रहे हैं, जिससे ई-बसों की पैठ बढ़ रही है। पीएम ई-ड्राइव योजना के तहत ही 31 मार्च 2026 तक 4 मिलियन से अधिक आबादी वाले नौ प्रमुख शहरों में 14,000 से अधिक ई-बसों को संचालित करने की योजना है।
ई-बसों की बिक्री में महाराष्ट्र पहले स्थान पर
ई बसों की बिक्री के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे है, CY 24 में 2,423 ई-बसों का रजिस्ट्रेशन हुआ। इसके बाद दिल्ली (2,361) और कर्नाटक (1,473) का स्थान है। रिपोर्ट के अनुसार, विभिन्न राज्य परिवहन उपक्रम अब इस मॉडल का पालन कर रहे हैं, जिससे ई-बसों का विस्तार हो रहा है।
ई-बसों की लागत और संभावनाएं
ई-बसों की प्रति किलोमीटर संचालन लागत डीजल बसों से कम होती है। इसके अलावा, जैसे-जैसे बैटरी की कीमतें घटेंगी और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार होगा, ई-बसों के लिए स्वामित्व लागत भी कम हो जाएगी। रिपोर्ट में बताया गया कि 12 साल की अवधि में वातानुकूलित ई-बसों के लिए टीसीओ डीजल बसों की तुलना में 15-20% कम है, जिससे ई-बसें और भी आकर्षक विकल्प बन रही है। इसके अलावा ई-बसें वायु प्रदूषण को कम करने में मदद करती है जो वर्तमान समय की सबसे ज्यादा जरुरत है।
भारत में प्रमुख ई-बस निर्माताओं के पास 20 हजार यूनिट के ऑर्डर
भारत में इलेक्ट्रिक बसों के प्रमुख निर्माता टाटा मोटर्स, ओलेक्ट्रा, जेबीएम, पीएमआई और स्विच मोबिलिटी हैं, जो मिलकर लगभग 40,500 ई-बसों का उत्पादन कर सकते हैं। इन कंपनियों के पास अगले दो सालों में 20,000 ई-बसों के आदेश हैं, जो बिक्री को और बढ़ावा देंगे।
ई-बसों के लिए भविष्य की दिशा
ई-बसों की मांग में वृद्धि की संभावना है, खासकर शहरों और राज्य परिवहन उपक्रमों द्वारा इन्हें अपनाए जाने के कारण। हालांकि, अंतर-शहर परिवहन के लिए बेहतर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, जीसीसी मॉडल के तहत समय पर भुगतान को लेकर चिंताएं मौजूद हैं, लेकिन इस मुद्दे का समाधान भुगतान सुरक्षा तंत्र के जरिए किया जा सकता है।
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