हाइड्रोजन व्हीकल टेक्नोलॉजी और कंपनियों की रणनीति के बारे में विस्तार से जानिए
भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में हाइड्रोजन कमर्शियल वाहनों (Hydrogen Commercial Vehicles) का एक नया युग शुरू हो रहा है। जहां अभी तक ईवी (Electric Vehicles) ही हरित परिवहन (Green Transport) का चेहरा बने हुए थे, वहीं अब देश की प्रमुख कंपनियां जैसे टाटा मोटर्स, अशोक लेलैंड और डेमलर इंडिया हाइड्रोजन फ्यूल पर चलने वाले ट्रकों को सड़कों पर लाने की होड़ में जुट चुकी हैं। आइए, ट्रक जंक्शन की इस खबर से जानें कि हाइड्रोजन वाहन तकनीक क्या है और प्रमुख कंपनियां इन वाहनों को सड़कों पर उतारने के लिए क्या-क्या रणनीति बना रही है।
हाइड्रोजन व्हीकल टेक्नोलॉजी क्या है?
हाइड्रोजन वाहन ऐसे ट्रक या गाड़ियां होती हैं जो पेट्रोल या डीजल की जगह हाइड्रोजन गैस से चलती हैं। ये तकनीक खासतौर पर पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाने और फ्यूल की बचत करने के लिए विकसित की गई है। हाइड्रोजन से चलने वाले ट्रक मुख्यतः दो प्रकार की तकनीक पर काम करते हैं :
1.H2-ICE हाइड्रोजन आंतरिक दहन इंजन (Hydrogen Internal Combustion Engine)
हाइड्रोजन इंटरनल कंप्शन इंजन (H2-ICE ) देखने और काम करने में पारंपरिक डीजल इंजन जैसा होता है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि इसमें डीजल के बजाय हाइड्रोजन गैस को जलाया जाता है। जब हाइड्रोजन गैस जलती है, तो वह ऊर्जा पैदा करती है जिससे इंजन चलता है और वाहन आगे बढ़ता है। इस तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि मौजूदा डीजल इंजनों को कुछ बदलाव के साथ हाइड्रोजन पर चलने लायक बनाया जा सकता है। इसलिए इसे तेजी से अपनाया जा सकता है। हालांकि, इसमें थोड़ी मात्रा में नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) जैसी गैसें बन सकती हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक होती हैं।
2.FCEV फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक व्हीकल (Fuel Cell Electric Vehicle)
FCEV यानी Fuel Cell Electric Vehicle पूरी तरह से अलग और ज्यादा उन्नत तकनीक पर आधारित है। इसमें हाइड्रोजन को सीधे नहीं जलाया जाता, बल्कि एक फ्यूल सेल के जरिए हाइड्रोजन गैस को बिजली में बदला जाता है। यही बिजली मोटर को चलाती है, जिससे गाड़ी आगे बढ़ती है। इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे प्रदूषण बिल्कुल नहीं होता। सिर्फ पानी बाहर निकलता है। इसे पर्यावरण के लिहाज से सबसे स्वच्छ तकनीक माना जाता है। हालांकि, फ्यूल सेल सिस्टम महंगे होते हैं और अभी भारत में हाइड्रोजन भरने के स्टेशन बहुत कम हैं, जिससे इसका बड़े पैमाने पर उपयोग करना थोड़ा मुश्किल है।
कुल मिलाकर, H2-ICE तकनीक शुरुआत में आसान और कम खर्चीली साबित हो सकती है, जबकि FCEV तकनीक लंबी दूरी के लिए एक स्थायी, प्रदूषण-मुक्त समाधान के रूप में देखी जा रही है। दोनों ही तकनीकें भविष्य के ग्रीन ट्रांसपोर्ट की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
जानिए भारत में हाइड्रोजन ट्रकों की शुरुआत क्यों जरूरी है?
भारत जैसे विशाल देश में पर्यावरण प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनकर उभर रही है। इस समस्या का एक बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण है। पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार द्वारा ऐसे वाहनों को प्रोत्साहित किया जा रहा है जो धुआं नहीं छोड़े। इनमें हाइड्रोजन वाहन भी शामिल है। भारत सरकार ने 19,744 करोड़ रुपये की लागत से National Green Hydrogen Mission लॉन्च किया है, जिससे देश में हाइड्रोजन उत्पादन, वितरण और उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके अलावा भारत ने ग्लोबल क्लाइमेट कमिटमेंट के तहत 2070 तक नेट जीरो एमिशन का लक्ष्य रखा है।
हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी के लिए टाटा मोटर्स की रणनीति
टाटा मोटर्स देश की सबसे बड़ी कमर्शियल वाहन निर्माता कंपनी है और अब हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी में भी अगुआ बनना चाहती है। टाटा ने अपने हाइड्रोजन इंजन वाले ट्रकों (H2-ICE) को जमशेदपुर, मुंबई, दिल्ली-NCR जैसे इलाकों में ट्रायल के लिए उतारा है। इसके अलावा टाटा की FCEV बसें पहले से चल रही हैं। टाटा ने इंडियन ऑयल के साथ मिलकर फ्यूल सेल बसों का पायलट पहले ही शुरू कर दिया है।
अशोक लेलैंड की तैयारी
अशोक लेलैंड ने Auto Expo 2023 में Hydrogen ICE ट्रक प्रदर्शित किया था और अब वह अगले 18-24 महीनों में अपना पहला हाइड्रोजन ट्रक बाज़ार में उतारने की योजना बना रहा है। कंपनी का मानना है कि H2-ICE तकनीक भारत के लिए उपयुक्त है क्योंकि यह मौजूदा इंजन तकनीक के करीब है और जल्दी अपनाई जा सकती है। अशोक लेलैंड ने 2023 में रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ मिलकर भारत का पहला हाइड्रोजन ICE ट्रक पेश किया था। साथ ही, अशोक लेलैंड ने NTPC ग्रीन एनर्जी के साथ FCEV बसों की डिलीवरी के लिए करार किया है, जिन्हें दिल्ली, लेह और लद्दाख जैसे इलाकों में चलाया जा रहा है।
डेमलर इंडिया की दिशा
डेमलर इंडिया (भारत में BharatBenz ब्रांड के तहत काम करती है) भी अपने ग्लोबल अनुभव का लाभ उठाकर भारत में Hydrogen FCEV ट्रकों को टेस्ट कर रही है। कंपनी इन ट्रकों को लॉन्ग-हॉल और हैवी-ड्यूटी सेगमेंट के लिए उपयुक्त मानती है।
भारत में हाइड्रोजन ट्रकों का भविष्य
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार और उद्योग साथ मिलकर हाइड्रोजन इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करें, तो आने वाले 5 वर्षों में भारत के लॉजिस्टिक्स सेक्टर में हाइड्रोजन ट्रकों का बड़ा रोल हो सकता है। टाटा, अशोक लेलैंड और डेमलर जैसी कंपनियां जिस तरह हाइड्रोजन तकनीक में निवेश कर रही हैं, उससे यह स्पष्ट है कि भारत का कमर्शियल व्हीकल सेक्टर जल्द ही ‘ग्रीन ट्रांसपोर्ट’के नए युग का नेतृत्व करेगा। यदि नीति समर्थन और इंफ्रास्ट्रक्चर सही दिशा में बढ़ते रहे, तो भारत हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी का ग्लोबल हब भी बन सकता है।
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