Fastag से अब पूरी तरह डिजिटल होगा टोल कलेक्शन, जानें इसके फायदे
पहले टोल प्लाजा पर लंबी लाइनें लगती थी, लेकिन धीरे धीरे FASTag की मदद से टोल कलेक्शन की प्रक्रिया 'फास्ट' हुई। अब यह 'डिजिटल' होने वाला है, क्योंकि अब टोल कलेक्शन को और भी ज्यादा उन्नत करने की आवश्यकता हो चुकी है। सरकार अब GNSS तकनीक लाकर टोल टैक्स कलेक्शन को और भी ज्यादा आसान करने के प्रयास में है जिसकी वजह से टोल प्लाजा जल्द ही 'गैर-जरूरी' हो सकते हैं। केंद्र सरकार, भारत में नई टोल संग्रह तकनीक पेश करने की योजना में है। सरकार इसी महीने तक इस तकनीक को भारत में लाकर GNSS आधारित टोल कलेक्शन प्रणाली के उपयोग को बल दे सकती है। केंद्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बताया कि सरकार का लक्ष्य जीपीएस आधारित टोल कलेक्शन प्रणाली शुरू करना है, ताकि टोल टैक्स का संग्रहण और भी ज्यादा सुविधाजनक बनाया जा सके। फिलहाल देश में फास्टैग के जरिए टोल लिया जाता है, करीब तीन साल पहले fastag को टोल कलेक्शन के लिए अनिवार्य कर दिया गया था।
क्या है GNSS तकनीक ?
GNSS तकनीक का पूरा नाम ग्लोबल नेविगशन सैटेलाइट सिस्टम है, जो सैटेलाइट सिग्नल का इस्तेमाल करते हुए वर्ल्डवाइड लोकेशन के हिसाब से नेविगेशन प्रदान करता है। भारत का नाविक, यूनाइटेड स्टेटस का जीपीएस सिस्टम GNSS तकनीक का ही उदाहरण है।
कैसे करेगा ये काम?
नई GNSS आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम, वाहन नंबर प्लेटों को स्कैन कर उनसे उचित टोल टैक्स वसूल करेगी। गडकरी ने बताया कि केंद्र सरकार पहले ही दो जगहों पर इस नई प्रणाली का परीक्षण कर चुकी है। इस सिस्टम के जरिए वाहन के चलते समय कैमरों के माध्यम से नंबर प्लेट की पहचान की जाती है। यह वाहन की सही जियो फेंसिंग करते हुए निर्धारित टोल टैक्स वसूल करती है। खास बात यह है कि यह प्रणाली लोकेशन और वाहन द्वारा तय की गई दूरी के आधार पर टोल का कैलकुलेशन करती है। इस प्रणाली के जरिए भारत में टोल प्लाजा की संख्या को कम किया जा सकता है। जिससे टोल कलेक्शन में लगने वाली लागत भी कम होगी और यातायात की भीड़ को भी कम किया जा सकेगा।
GNSS आधारित टोल कलेक्शन के फायदे
वर्तमान में भारत के अधिकांश राजमार्गों पर टोल टैक्स काटने के लिए FASTag का उपयोग किया जाता है। इसके लिए टोल प्लाजा पर आरएफआईडी-सक्षम बैरियर मौजूद होते हैं, जो वाहनों पर चिपकाए गए फास्टैग आईडी को पढ़कर दो टोल प्लाजा के बीच की दूरी के आधार पर शुल्क की गणना और भुगतान प्राप्त करता है। FASTag सिस्टम में FASTag कोड की सही स्कैनिंग के लिए वाहनों को टोल प्लाजा पर रुकने की जरूरत पड़ती है। GNSS आधारित टोल संग्रहण में टोल प्लाज़ा पर रुकने की आवश्यकता नहीं होती।
इसके अलावा इस प्रणाली का एक और फायदा यह है कि इसके जरिए टोल का उचित निर्धारण हो पाता है। FASTag प्रणाली में वाहन की तय की गई दूरी का पता नहीं चलता लेकिन GNSS आधारित टोल संग्रहण प्रणाली में तय की गई दूरी के आधार पर उचित टोल का भुगतान लिया जाता है।
प्रतीक्षा समय में हुआ सुधार
FASTags की शुरूआत से टोल प्लाजा पर वाहनों की कतारें लगना लगभग बंद हो चुकी है। अगर लगती भी है तो अमूमन 50 मीटर से ज्यादा लंबी कतार देखने को नहीं मिलती है। इस प्रणाली ने वर्ष 2018-19 में टोल भुगतान के लिए लगने वाले 8 मिनट के समय को पहले से कम करते हुए लगभग 47 सेकंड कर दिया है। हालांकि स्कैनर, फास्टैग में बैलेंस न होने आदि की समस्या के कारण कई बार टोल प्लाजा पर लंबी कतारें देखने को मिल जाती है। नए टोल संग्रह प्रणाली में वाहनों को किसी भी जगह पर रुकने की जरूरत नहीं होगी। टोल का भुगतान स्वतः हो जाएगा।
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