स्पीड लिमिट पर केंद्र का बड़ा फैसला, कन्फ्यूजन होगा दूर
राज्यों में राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे पर स्पीड लिमिट को लेकर होने वाले भ्रम को खत्म करने के लिए, सड़क परिवहन मंत्रालय ने मोटर वाहन अधिनियम में एक संशोधन की शुरुआत की है, जिससे राज्यों के लिए अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले किसी भी हाईवे या एक्सप्रेस वे पर अधिकतम गति सीमा में बदलाव लाने के लिए पहले एनएचएआई एवं अन्य केंद्रीय राजमार्ग अधिकारियों से परामर्श लेना अनिवार्य हो जाएगा।
आमतौर पर देखा जाए तो राष्ट्रीय राजमार्गों पर गतिसीमा 100 किमी प्रति घंटे की होती है, वहीं एक्सप्रेसवे पर कारें 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से जा सकती है। लेकिन स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर गति सीमा तय करने का अधिकार राज्य सरकार को दिया जाता है।
राज्य को अलग अलग गति सीमा तय करने से पहले लेना होगा मशवरा
'राज्य प्राधिकरणों द्वारा केंद्र द्वारा अधिसूचित गति सीमा की तुलना में नेशनल हाईवे पर अलग-अलग स्पीड लिमिट अधिसूचित करने से ड्राइवरों के बीच भ्रम पैदा होता है। अक्सर उन्हें बदलती गति सीमा का अंदाजा नहीं होता जो ड्राइवर आमतौर पर उन मार्गों का उपयोग नहीं करते हैं उनके लिए स्पीड लिमिट का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है। साथ ही यह भ्रष्टाचार का भी एक स्रोत बन जाता है।
अब इस नए प्रस्ताव के अनुसार राज्य प्राधिकरण एजेंसियों को स्पीड लिमिट बढ़ाने-घटाने या किसी अन्य नियम को अधिसूचित करने से पहले राजमार्ग के स्वामित्व वाली एजेंसियों जैसे एनएचएआई, एनएचआईडीसीएल और सड़क परिवहन मंत्रालय के क्षेत्रीय अधिकारियों (आरओ) से मशवरा करना होगा और उन्हें इसकी सूचना प्रदान करनी होगी।
स्कूल के बच्चों की सुरक्षा के लिए भी उठाए गए कदम
केंद्र सरकार के इस प्रस्तावित संशोधन में स्कूल बसों द्वारा किए गए यातायात अपराधों के लिए जुर्माना बढ़ाकर उसे दोगुना करना भी शामिल है ताकि ड्राइवरों और वाहन मालिकों (शैक्षणिक संस्थानों) को ज्यादा जवाबदेह बनाया जा सके। इसके लिए मंत्रालय ने अधिनियम में एक नया खंड शामिल करने का प्रस्ताव दिया है।
बच्चों को ले जा रही स्कूल बसों से जुड़ी दुर्घटनाओं की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए कानून में एक नई धारा जोड़ी जाएगी। इसका उद्देश्य स्कूलों या किसी अन्य शैक्षणिक संस्थान में जाने वाले छात्रों की सुरक्षा में सुधार करना है।
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