Posted On : 09 September, 2024
हर साल 9 सितंबर को वर्ल्ड इलेक्ट्रिक व्हीकल डे मनाया जाता है। यह खास दिन का उद्देश्य दुनियाभर में क्लीन मोबोलिटी के महत्व को बताना है। वर्ल्ड इलेक्ट्रिक व्हीकल डे मनाने की शुरुआत साल 2020 में हुई थी। इसके बाद से हर साल इसे सेलिब्रेट किया जा रहा है। भारत के लिए इस खास दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि भारत सरकार 2030 तक देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर में ईवी की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत तक करना चाहती है। इस लक्ष्य को पाने के लिए सरकार ने पिछले कुछ सालों में कई प्रगतिशील कदम उठाए हैं। नतीजतन, देश में पिछले पांच वर्षों में लगभग 50% की CAGR के साथ, ईवी की मांग में वृद्धि देखी गई है।
अब यह उम्मीद की जाती है कि 2030 तक भारतीय सड़कों पर लगभग 90 मिलियन ईवी होंगे, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 28 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी। हालांकि सरकार को इस लक्ष्य को पाने के लिए कुछ खास उपाय करने होंगे जिसमें ईवी के रिसर्च एंड डवलपमेंट पर निवेश को बढ़ाना प्रमुख है। भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) ने जुलाई में ई-मोबिलिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट रोडमैप जारी किया। आइए ट्रक जंक्शन की इस पोस्ट में ईवी के रिसर्च एंड डवलपमेंट की स्थिति पर विस्तार से जानते हैं।
भारत में रिसर्च एवं डवलपमेंट में हर साल कम बजट आवंटित किया जाता है। वित्त वर्ष 2020-21 में कुल राष्ट्रीय आरएंडडी (R&D) खर्च सकल घरेलू उत्पाद का सिर्फ 0.64% था, जबकि कई उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में यह 2% से ऊपर था। सरकार को इस बजट में वृद्धि करनी चाहिए। भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ने देश के लिए ई-मोबिलिटी आरएंडडी रोडमैप जारी किया। इसमें ई-मोबिलिटी के 34 महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास की आवश्यकता बताई गई है। साथ ही 5 वर्षों में लगभग 1,152 करोड़ रुपये आवंटित करने का सुझाव दिया गया है।
अपने-अपने देश में इनोवेशन और टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने में जहां विश्वभर में नए उत्पादों का पेटेंट कराने की होड मची हुई है, वहीं भारत अभी इसमें काफी पीछे है। विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के डेटा के अनुसार, 2010 से 2022 के बीच इलेक्ट्रिकल मशीनरी, उपकरण, एनर्जी और सेमीकंडक्टर में ग्लोबर स्तर पर 170,000 पेटेंट दिए गए। इनमें 35% चीन से और लगभग 0.3% भारत से थे। इन श्रेणियों में भारतीय पेटेंट 2010 में सिर्फ 58 से बढ़कर 2020 में 442 हो गए, जो आठ गुना बढ़ गए। अगर भारत को ईवी सेक्टर में ग्लोबल लीडर बनना है तो रिसर्च और डवलपमेंट में भारी निवेश करना होगा।
इलेक्ट्रिक व्हीकल में सबसे ज्यादा खर्चा इलेक्ट्रिक बैटरियों पर होता है और ये बैटरियां अभी दूसरे देशों से मंगाई जा रही है। अगर ईवी बैटरियां देश में ही बनने लगे तो इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत कम होगी और स्थानीय लोगों को ज्यादा रोजगार मिलेगा। इसलिए सरकार को ईवी बैटरियों के निर्माण क्षेत्र में रिसर्च एंड डवलपमेंट को बढ़ावा देना चाहिए और ज्यादा निवेश करना चाहिए। यहां आपको बता दें कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र भारत में सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है।
भारत सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देने के लिए FAME योजना के तहत विनिर्माण और उपयोग पर सब्सिडी देती है। FAME II के तहत प्रोत्साहन प्राप्त करने के लिए ईवी के लिए 50% स्थानीय विनिर्माण आवश्यक है, लेकिन इसे प्राप्त करना इंडस्ट्री के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत में वर्तमान में हार्डवेयर विनिर्माण आधार उपलब्ध नहीं है। मूल उपकरण निर्माताओं (OEM) के लिए टियर 1 आपूर्तिकर्ता लोकलाइजेशन को बढ़ावा दे रहे हैं, लेकिन टियर 2 और 3 आपूर्तिकर्ताओं के बीच लोकलाइजेशन अभी तक विकसित नहीं हुआ है।
रिसर्च एंड डवलपमेंट में निवेश के मामले में चीनी कंपनियां सबसे आगे हैं और उन्हें इसका फायदा भी मिल रहा है। दुनिया में सबसे ज्यादा ईवी चीनी कंपनियां ही बेच रही हैं। चीन की इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी नियो और बीवाईडी ने 2024 की पहली तिमाही में अपने राजस्व का क्रमशः 29% और 8.5% रिसर्च एंड डवलपमेंट पर खर्च किया, यह यू.एस. स्थित वाहन निर्माता कंपनी टेस्ला द्वारा खर्च किए गए 5.4% से बहुत अधिक था। यूरोप की प्रमुख वाहन निर्माता कंपनियां वोक्सवैगन, स्टेलंटिस और मर्सिडीज-बेंज ने 2022 में अपने राजस्व का क्रमशः 6.8%, 3.7% और 5.7% आरएंडडी पर खर्च किया। प्रमुख भारतीय ईवी निर्माता महिंद्रा एंड महिंद्रा और टाटा मोटर्स की विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी आरएंडडी तीव्रता क्रमशः 5.7% और 5.5% है। भारत में ऑटो कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स अभी भी पीछे हैं।
भारत सरकार को 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहन बिक्री का लक्ष्य पाने के लिए लगभग 444,000 सार्वजनिक ईवी चार्जर की आवश्यकता होगी। वर्तमान में, देशभर में 10,000 से अधिक सार्वजनिक ईवी चार्जिंग स्टेशन चालू हैं। ईवी में कंप्लीट परिवर्तन के लिए ईवी, बैटरी इंफ्रास्ट्रक्चर और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में कुल 267 बिलियन अमेरिकी डॉलर (19.7 लाख करोड़ रुपये) के निवेश की आवश्यकता है।
भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल की लागत में बैटरी की हिस्सेदारी करीब 40% है। यूरोप में हाल ही में ICCT के शोध में सामने आया कि बड़ी बैटरी ज़्यादातर यूजर्स के लिए ज़्यादा ऊर्जा खपत का कारण बनती है, सिवाय उन लोगों के जो लंबी दूरी की यात्रा करते हैं। बैटरी की लागत को कम करके ईवी की लागत घटाई जा सकती है। सरकार को ईवी बैटरी की आरएंडडी पर अधिक निवेश पर सोचना चाहिए।
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