भारत में बैटरी स्वैपिंग टेक्नोलॉजी को मिल रही रफ्तार, EV सेक्टर में क्रांति की तैयारी
भारत में इलेक्ट्रिक दोपहिया और तिपहिया वाहनों की बढ़ती लोकप्रियता के साथ, बैटरी स्वैपिंग तकनीक एक नए युग की ओर तेजी से बढ़ रही है। पारंपरिक पेट्रोल और डीजल वाहनों की जगह अब तेजी से इलेक्ट्रिक व्हीकल्स ले रहे हैं, जिससे चार्जिंग के नए समाधान की जरूरत बढ़ी है और यहीं बैटरी स्वैपिंग गेमचेंजर साबित हो रही है।
जानिए क्या है बैटरी स्वैपिंग?
यह तकनीक यूजर्स को कुछ ही मिनटों में डिस्चार्ज बैटरी को फुल चार्ज बैटरी से बदलने की सुविधा देती है। इसके लिए उसे लंबा इंतजार भी नहीं करना होता है।
बैटरी स्वैपिंग क्षेत्र में कई बड़े नाम मैदान में
इंडियन ऑयल, स्टार्टअप्स और रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियां कई सालों से इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए काम कर रही हैं। अब जब ई-रिक्शा, टुक-टुक, डिलीवरी फ्लीट और गिग वर्कर्स की संख्या बढ़ रही है, तो बैटरी स्वैपिंग स्टेशनों का नेटवर्क भी विस्तार पा रहा है। यहां आपको बता दें कि 2023 में, भारत में बिकने वाले तीन पहिया वाहनों में 57% इलेक्ट्रिक थे। दोपहिया इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 2020 में 1% से भी कम थी, जो अब 6% तक पहुंच गई है। ऐसे में बैटरी स्वैपिंग स्टेशनों की मांग लगातार बढ़ रही है।
2030 तक 1.1 लाख से अधिक स्वैपिंग कियोस्क की होगी जरूरत
भारत सरकार ने पिछले साल प्रकाशित इलेक्ट्रिक वाहन बाजार पर एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि भारत को चालू वित्त वर्ष के अंत तक 26,000 से अधिक स्वैपिंग कियोस्क की आवश्यकता होगी, जो मार्च 2026 तक चलेगा और वित्त वर्ष 2030 तक 111,000 से अधिक स्वैपिंग कियोस्क की आवश्यकता होगी।
भारत में बैटरी स्वैपिंग क्षेत्र में प्रमुख खिलाड़ी और निवेश
- Battery Smart के पास 40 शहरों में 1,400 से ज्यादा स्वैपिंग साइट्स हैं।
- SUN Mobility इंडियन ऑयल के साथ मिलकर 800+ स्टेशन चला रहा है।
- Gogoro Inc. ने भारत में 15,000 स्वैपिंग स्टेशनों के लिए $2.5 बिलियन निवेश की योजना बनाई है।
- Reliance BP Mobility भी स्वैपिंग नेटवर्क पर काम कर रही है, हालांकि मानकीकरण की कमी बाधा बनी हुई है।
फास्ट चार्जिंग बनाम स्वैपिंग
हालांकि फास्ट-चार्जिंग तकनीक का विकास भी तेजी से हो रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि स्वैपिंग विशेष रूप से डिलीवरी और गिग-इकोनॉमी सेगमेंट के लिए अधिक व्यावहारिक है। Swiggy जैसे ब्रांड्स ने 2030 तक 100% इलेक्ट्रिक फ्लीट की योजना बनाई है, जिससे बैटरी स्वैपिंग को और बल मिलेगा। British International Investment के वरिष्ठ अधिकारी अभिनव सिन्हा के अनुसार, "ड्राइवरों के लिए हर मिनट कीमती है। बैटरी को तीन से पांच मिनट में बदलना उनके लिए आमदनी बचाने जैसा है।"
यह है सबसे बड़ी चुनौती
सबसे बड़ी चुनौती है विभिन्न कंपनियों के बैटरी डिजाइनों का अंतर-संचालन (interoperability) न होना। यदि कंपनियां बैटरियों को मानकीकृत करने और साझा उपयोग के लिए राजी होती हैं, तो यह तकनीक और अधिक तेजी से फैल सकती है।
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