Posted On : 12 September, 2024
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि अगले 2 साल में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की कीमत पेट्रोल और डीजल गाड़ियों के बराबर हो जाएंगी, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों पर सब्सिडी और वित्तीय प्रोत्साहन अनावश्यक हो जाएंगे। 64वें ACMA के वार्षिक कार्यक्रम में बोलते हुए, नितिन गडकरी ने इस बात प्रकाश डाला कि दो साल बाद ईवी के लिए प्रोत्साहन या सब्सिडी की आवश्यकता नहीं हो सकती है, क्योंकि तब तक इलेक्ट्रिक वाहनों की लागत पेट्रोल और डीजल वाहनों के बराबर होने की उम्मीद है। इस दौरान उन्होंने किसी भी अतिरिक्त प्रोत्साहन के लिए अपने खुलेपन की पुष्टि भी की।
परिवहन और राजमार्ग मंत्री गडकरी ने यह भी कहा कि उन्हें वित्त मंत्री द्वारा ईवी पर सब्सिडी दिए जाने से कोई समस्या नहीं है, जबकि इससे पहले उन्होंने सुझाव दिया था कि ईवी निर्माताओं को सब्सिडी की अब कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उत्पादन की लागत कम हो गई है और उपभोक्ता अब अपने लिए इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) या सीएनजी वाहन चुन रहे हैं। भारत में, पिछले साल ईवी की बाजार हिस्सेदारी 6.3% थी, जो पिछले साल की तुलना में अब 50% अधिक है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपने संबोधन में कहा कि मैं इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए किसी भी अतिरिक्त सब्सिडी या प्रोत्साहन के खिलाफ नहीं हूं। अगर वित्त मंत्रालय या उद्योग मंत्रालय ईवी पर अधिक प्रोत्साहन या सब्सिडी देने का फैसला लेती है, तो मुझे कोई समस्या नहीं है। यह आटोमोटिव उद्योग के लिए फायदेमंद होगा। गडकरी ने कहा, मेरा मनना है कि उत्पादन की संख्या में भी वृद्धि हो रही है, किसी भी अतिरिक्त सब्सिडी या प्रोत्साहन के बिना भी आप लागत को बनाए रख सकते हैं।
उन्होंने लिथियम-आयन बैटरी के आयात पर भारत की निर्भरता में उल्लेखनीय कमी आने के संकेत दिए हैं। एक समय में लिथियम आयन बैटरी का आयात मूल्य 1.68 लाख करोड़ रुपए था। गड़करी ने बताया कि बढ़ते घरेलू उत्पादन और वैकल्पिक बैटरी प्रौद्योगिकियों में प्रगति के कारण अब इसकी कीमत में 108-110 डालर प्रति किलोवाट कम हुई है। मुझे विश्वास है कि अगले 2 से 3 सालों में इस आंकड़े में भारी कमी देखी जा सकती है।
आटोमोटिव उद्योग के बदलते रुख को स्पष्ट करते हुए गडकरी ने बताया कि 10 साल पहले, जब मैं इलेक्ट्रिक वाहनों की वकालत कर रहा था, तो ऑटोमोटिव क्षेत्र के बड़े दिग्गजों ने मुझे गंभीरता से नहीं लिया और भारत में दिग्गजों ने शुरू में ईवी के लिए जोर देने को खारिज कर दिया था। आज, वे मानते हैं कि वे शायद चूक गए हैं। उन्होंने कहा, आज उद्योग का नजरिया काफी बदल गया है। दिग्गज हरित विकल्पों की ओर तेजी से प्रेरित हो रहे हैं। भारत दुनिया में नंबर एक आटोमोटिव मैन्यूफैक्चरिंग हब बन सकता है। उन्नत प्रौद्योगिकी, किफायती प्रतिभाशाली कर्मचारियों की उपलब्धता और वैश्विक स्तर पर भारतीय ऑटो उद्योग की अच्छी प्रतिष्ठा जैसे कारक इसके पक्ष में काम करते हैं।
पुराने वाहनों को हटाने में तेजी लाने के लिए सरकारी प्रोत्साहन की आवश्यकता पड़ेगी। इस सवाल पर गडकरी ने कहा कि इसकी जरूरत नहीं होगी, क्योंकि बाजार की ताकतें आटो कंपनियों को उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए स्वयं कदम उठाने के लिए मजबूर करेंगी। उन्होंने ऑटोमोबाइल कंपनियों से अपने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) पहल के हिस्से के रूप में सुरक्षा उपायों को बढ़ाने में भाग लेने का आग्रह किया। मंत्री ने सड़क सुरक्षा के महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी जोर दिया और इस बात पर प्रकाश डाला कि सड़क सुरक्षा उनके मंत्रालय के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बनी हुई है, क्योंकि खराब तरीके से डिजाइन और इंजीनियर की गई सड़कें भारत में दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में से एक हैं।
भारतीय मोटर वाहन उद्योग ने वित्त वर्ष 2023-24 में 20 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर लिया है और अब यह देश में एकत्र कुल जीएसटी में 14 से 15 % का योगदान देता है। भारत में विभिन्न श्रेणियों में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स को अपनाने में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है। भारत सरकार के वाहन डैशबोर्ड डेटा से पता चलता है कि ग्रीन मोबिलिटी समाधानों की ओर रुझान बढ़ा है। इलेक्ट्रिक वाहन फ्लीट में सबसे उल्लेखनीय रुझान तिपहिया वाहन श्रेणी में देखा गया है। वर्ष 2024 में खरीदे गए सभी नए थ्री व्हीलर वाहनों में से 53.61 प्रतिशत इलेक्ट्रिक थे, जिससे यह सेगमेंट इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) अपनाने में अग्रणी बन गया। दोपहिया वाहनों की बिक्री में ईवी की हिस्सेदारी 4.97 प्रतिशत, इलेक्ट्रिक कारों की हिस्सेदारी केवल 2.14 प्रतिशत है। अनुमानित आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2024 में बेची गई सभी नई बसों में 3.20 फीसदी इलेक्ट्रिक होंगी।
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