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परिवहन मंत्रालय का अलर्ट : सभी वाहनों पर लागू हो सकता है नया हॉर्न नियम 

Posted On : 04 September, 2021

हॉर्न की आवाज : ट्रकों सहित सभी वाहनों के कानफोड़ू हॉर्न पर होगी सख्ती!

आप सडक़ से पैदल गुजर रहे हैं या अपने दुपहिया वाहन पर सवार हैं। यदि आपको ऐसा तेज हॉर्न सुनाई पड़े कि आपके कान के पर्दे फटने जैसी आवाज हो तो आपको कैसा लगेगा? अक्सर ऐसे कानफोड़ हॉर्न बजने से एक्सीडेंट के खतरे भी बढते हैं। कई बार ऊटपटांग आवाज वाले हॉर्न बजने से लोगों की मानसिक शांति भंग हो जाती है। ट्रक, कार, पिकअप,ऑटो रिक्शा, थ्री व्हीलर, ट्रैक्टर आदि वाहनों में अधिकांश ऐसे ही हॉर्न लगे होते हैं। यहां बता दें कि इस प्रकार के हॉर्न पर केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। यही नहीं उन्होंने  वाहनों के अधिक ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले हॉर्न की आवाज की जगह भारतीय संगीत की धुनों की आवाज बदलने का नियम लागू करने के संकेत दिए हैं। इस नए नियम को लागू करने की तैयारी भी शुरू कर दी गई हैं। तो, अब वह दिन दूर नहीं जब कानों को चुभने वाले हॉर्न की आवाज से आपको निजात मिलेगी ओर सडक़ों पर गूंजेगी भारतीय संगीत की मधुर धुनें। 


यूं आया गडकरी को नया आइडिया 

हॉर्न नियम बदलने का आइडिया केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को कैसे आया? इस संबंध में गडकरी ने कहा है कि ‘मैं नागपुर में एक बिल्डिंग की 11वीं मंजिल पर रहता हूं। मैं रोज सुबह 1 घंटे प्राणायाम करता हूं। लेकिन हॉर्न सुबह के सन्नाटे में खलल डालते हैं। ‘ आगे उन्होंने कहा कि इस परेशानी के बाद मेरे मन में यह ख्याल आया कि वाहनों के हॉर्न सही तरीके से होने चाहिए। हम सोचने लगे हैं कि कार के हॉर्न की आवाज भारतीय म्यूजिकल यंत्रों की होनी चाहिए और हम इस पर काम कर रहे हैं। इनमें तबला, ताल, वायलिन, बिगुल, बांसुरी जैसे वाद्ययंत्रों की आवाज हॉर्न से सुनाई देनी चाहिए।


वर्तमान में कोई नहीं करता नियम का पालन 

यदि मीडिया रिपोर्ट की मानें तो सरकार जल्द ही वाहनों के हॉर्न बदलने को लेकर नया नियम लागू कर सकती है। अभी तक कोई भी नो हॉन्किंग नियम का पालन नहीं करता। तेज हॉर्न बजाने से जिस तरह से ध्वनि प्रदूषण लोगों के मानसिक संतुलन पर प्रभाव डालता उसके निवारण के लिए अभी तक कोई सख्त नियम नही है। ऐसे में सरकार नया हॉर्न नियम लागू करती है तो इससे सभी वाहन चालकों को इसका पालन करना भी अनिवार्य होगा। वर्तमान नियमों के अनुसार एक हॉर्न की अधिकतम लाउडनेस 112 डेसिबल से अधिक नहीं हो सकती है। 


तेज हॉर्न है कानों के लिए  हानिकारक 

यदि तेज हॉर्न से होने वाले नुकसान की बात की जाए तो सबसे पहले यह जानते हैं कि  ऐसे लाउड ट्रेन हॉर्न लगभग 130 से 150 डेसिबल लाउड होते हैं जो काफी ज्यादा तेज होते हैं। इन पर रोक लगनी चाहिए। तेज हॉर्न के इस्तेमाल से सुनने वालों के इयर ड्रम खराब हो सकते हैं। इसके बाद वह व्यक्ति हमेशा के लिए बहरा हो जाता है। इसके अलावा दुर्घटनाएं होने के कारणों में तेज हॉर्न का बजना भी एक कारण कई बार होता है। अभी तक केरल ही ऐसा प्रदेश है जहां पुलिस हॉर्न की ध्वनि को माप कर तेज  आवाज वाले हॉर्न वाले वाहनों का चालान काट देती है। 


ध्वनि विस्तार के खिलाफ पहले से हैं ये नियम 

हाल ही केंद्रीय सडक़ एवं परिवहन मंत्रालय ने वाहनों के तेज हॉर्न बजाने की समस्या के लिए हॉर्न की आवाज बदलने का निर्णय लिया है वहीं बता दें कि केंद्र सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ओर से पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के तहत मल्टी टोन्ड हॉर्न और लाउडस्पीकर सहित सार्वजनिक स्थलों पर मनमाने ढंग से बजने वाले ध्वनि विस्तारक यंत्रों पर अंकुश लगाने के आदेश जारी किए थे। इस आदेश के अनुसार रात्रि 10 बजे से सुबह छह बजे तक ध्वनिविस्ताकर यंत्रों का उपयोग नहीं किया जा सकता। 


शांत क्षेत्र में 24 घंटे लागू होते हैं नियम 

जानकारी के लिए बता दें कि वर्तमान में केंद्र सरकार के जो आदेश हैं उनकी पालना के लिए सभी नगर निकायों के अलग-अलग क्षेत्र घोषित किए जाते हैं। इनमें औद्योगिक, आवासीय और शांत क्षेत्र शामिल हैं। बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, क्लब, मॉल आदि व्यावसायिक क्षेत्र में होने के कारण इनमें हॉर्न बजाने, लाउडस्पीकर आदि का इस्तेमाल करने पर रोक नहीं है। इसके अलावा शांत क्षेत्र जैसे अस्पताल, नर्सिंग होम, शैक्षणिक स्थल, श्मशान, कब्रिस्तान, मंदिर, मस्जिद और स्मारक आदि हैं। इनमें ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग करना वर्जित माना गया है। यदि कोई ऐसा करता है तो  शिकायत करने पर पुलिस आवश्यक कार्रवाई करती है। 


एक लाख रुपये तक के जुर्माना या पांच साल की सजा 

बता दें कि ध्वनि विस्तारक कानून की नियमावली के नियम (ग) के अंतर्गत नियमों की पालना के लिए जिला कलेक्टर या पुलिस अधीक्षक सर्वोच्च प्राधिकारी होते हैं।  नियमों  उल्लंघन पर कोई भी व्यक्ति संबंधित प्राधिकारी के पास शिकायत दर्ज करवा सकता है।  नियमो की पालना नहीं करने पर पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 15 के अनुसार एक लाख रुपये का जुर्माना या पांच साल की सजा का प्रावधान है। 

 

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