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06 Apr 2022
Automobile

डीजल की कीमतों में वृद्धि से वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री पर कोई प्रभाव नहीं

By News Date 06 Apr 2022

डीजल की कीमतों में वृद्धि से वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री पर कोई प्रभाव नहीं

मालभाड़े में वृद्धि से नुकसान की भरपाई में जुटे कमर्शियल वाहन चालक

पिछले कुछ दिनों से डीजल और पेट्रोल की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है। इससे कमर्शियल वाहनों की बिक्री पर असर होना चाहिए था लेकिन यह आश्चर्यजनक सत्य है कि अभी तक डीजल की बढ़ी कीमतों से वाणिज्यिक वाहनों की सेल पर कोई असर नहीं पड़ रहा। डीजल से संचालित वाहनों की बिक्री प्रभावित नहीं हो पा रही है। वास्तविकता यह है कि मार्च 2022 में भी एम एंड एचसीवी सेगमेंट ने अपनी रिकवरी जारी रखी। वहीं बुनियादी ढांचे से संबंधित गतिविधियों में तेजी बनी हुई है। इसके पीछे जो कारण निहित हैं उनमें यह भी सामने आया है कि जैसे ही डीजल की कीमतें अधिक बढ़ती हैं तो कमर्शियल वाहन मालिक अपने किराये एवं मालभाड़े में वृद्धि कर देते हैं। यहां ट्रक जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से आपको बताएंगे कि कैसे डीजल की कीमतों में वृद्धि के बावजूद कमर्शियल वाहनों की बिक्री प्रभावित नहीं हो रही।  

मध्यम और भारी वाणिज्यिक वाहन सेगमेंट में सीएनजी कोई विकल्प नहीं 

बता दें कि मध्यम और भारी वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में भी डीजल की कीमतों में वृद्धि का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा। इसका कारण यह है कि इन वाहनों में सीएनजी कोई विकल्प नहीं है। वहीं एलसीवी सेगमेंट में निर्माताओं के पोर्टफोलियो के लगभग 40-45 प्रतिशत में सीएनजी वाहन शामिल हैं। जब डीजल की कीमतें बढ़ती हैं तो बेड़े के मालिक सीएनजी के सस्ते संस्करण की ओर रुख करते हैं इसके बावजूद मांग में कोई कमी नहीं आ रही। कंपनी के अधिकारियों का यह भी कहना है कि अगर अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल ठीक हैं तो डीजल की बढ़ी कीमतों से कोई खास फर्क नहीं पड़ता। यही कारण हैकि कुछ सीवी निर्माताओं की खुदरा बिक्री मार्च में थोक डिस्पैच की तुलना में अधिक देखी गई। 

बुनियादी ढांचे के खर्च में वृद्धि से रिकवरी जारी 

यहां बता दें कि मार्च 2022 में मध्यम और भारी वाहन सेगमेंट ने अपनी रिकवरी जारी रखी। इसकी मुख्य वजह यह रही कि निर्माण, खनन आदि बुनियादी जरूरतों के अलावा केंद्र और राज्य सरकारों के आधारभूत ढांचे में भी वृद्धि रही। वहीं एलसीवी सेगमेंट में भी ई-कॉमर्स और कृषि क्षेत्रों के कारण मांग बरकरार बनी रही। 

टाटा मोटर्स और अशोक लेलैंड के वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री की स्थिति 

यहां बात करते हैं टाटा मोटर्स और अशोक लेलैंड के हल्के और भारी वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री एवं इनकी सालाना डिमांड की। बता दें कि टाटा मोटर्स के कुल सीवी वॉल्यूम में साल दर साल 16 प्रतिशत  की वृद्धि हुई है। इसके अलावा मध्यम और भारी कमर्शियल वाहनों की श्रृंखला में 33 प्रतिशत साल दर साल वृद्धि हुई जबकि एलसीवी सेगमेंट में 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इसी तरह अशोक लेलैंड ने एमएंड एचसीवी सेगमेंट में सालाना 26 प्रतिशत वृद्धि के नेतृत्व में 17 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। वीईसीवी ने कुल वॉल्यूम में सालाना 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जबकि घरेलू सीवी सेगमेंट में मार्च में 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 

मार्जिन को प्रभावित करती हैं ईंधन की कीमतें 

यहां बता दें कि ईंधन की कीमतें सीधे ट्रांसपोर्टर्स के मार्जिन को प्रभावित करती हैं। वाणिज्यिक वाहन निर्माता कंपनियों को ऐसा मानना है। वहीं वीई कमर्शियल व्हीकल्स के एमडी और सीईओ विनोद अग्रवाल ने एफई को बताया कि यदि माल भाड़ा दरों में ईंधन की कीमतों के अनुरूप वृद्धि नहीं होती है तो यह ट्रांसपोर्टर्स की क्षमता को नये वाहनों से जोडऩे या पुराने बेड़े को बदलने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह सच है कि अधिक वस्तुओं और सेवाओं को स्थानांतरित करने या बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को समय रहते पूरा करने के लिए ईंधन महंगा होने पर भी पूरा करने की आवश्यकता होती है। इस स्थिति में माल ढुलाई भाड़े में वृद्धि होना लाजिमी है। इधर अग्रवाल ने यह भी कहा है कि ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी से कम अवधि में वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री पर असर पड़ सकता है लेकिन लंबे समय तक ये बिक्री को प्रभावित नहीं करते क्योंकि माल भाड़ा भी ईंधन की कीमतों के अनुरूप बढ़ता है। 

रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते बढ़ रहे डीजल-पेट्रोल के दाम 

आपको बता दें कि कच्चे तेल के दाम रिकार्ड लेवल पर हैं।  रूस एवं यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण आए दिन डीजल और पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी हो रही है। रूस से तेल की आपूर्ति में बाधा की आशंका से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम वर्ष 2008 के बाद पहली बार 139 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक पहुंच गये। तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल  की जानकारी के अनुसार भारत द्वारा कच्चे तेल की खरीदारी गत 3 मार्च को 117.39 डॉलर प्रति बैरल हो गई जो 2012 के बाद सबसे ज्यादा थी। भारत अपने ईंधन खपत का 80 प्रतिशत आयात पर निर्भर है। इसीलिए भारत में डीजल और पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी के कारण महंगाई चरम पर पहुंच गई है। 

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