Posted On : 16 September, 2021
आज के युग में महिलाएं पुरुषों से कहीं भी पीछे नहीं हैं। खेत-खलिहान से लेकर आसमान में उड़ान भरने और कठिन से कठिन काम सरल साबित करने में महिलाओं का मुकाबला नहीं है। यूं तो हर क्षेत्र में महिलाएं तरक्की कर रही हैं लेकिन यहां बता दें कि ट्रक ठीक करने में भी महिलाएं आगे आ रही हैं। भारत की पहली महिला ट्रक मैकेनिक शांतिदेवी ने यह संभव कर दिखाया है कि किसी भी तरह के ट्रक के टायरों को खोलना और ट्रक की तकनीकी खामियों को दूर कर उसे ठीक कैसे किया जाता है। जानते हैं 55 वर्षीय इस बोल्ड ट्रक मैकेनिक महिला शांति देवी के जीवन और इनके ट्रक मैकेनिक बनने की क्या है दास्तां।
भारत की पहली महिला ट्रक मैकेनिक शांतिदेवी के जीवन की संघर्षपूर्ण कहानी है। शांतिदेवी बताती हैं कि वह बहुत ही गरीब परिवार में पैदा हुई। उसकी मां अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए दिन भर मेहनत-मजदूरी किया करती थी। शांति जब बड़ी हो गई तो उसने अपनी मां के काम में हाथ बंटाने के लिए सिलाई की। इसके बाद बीडी बनाने का काम किया। इससे उसने 4500 रुपये जमा कर लिए। इसके बाद शांति ने शादी कर ली। शांति का पति कुछ नहीं कमाता था इसलिए वह कमाने लगी। लेकिन जो भी पैसे कमाती थी पति उसे शराब पीने में उड़ा देता था। अधिक शराब पीने के कारण एक दिन उसके पति की मौत हो गई। अब शांति के सामने और दिक्कत आ गई। वह काम की तलाश में अपने गांव से दिल्ली आ गई। यहां उसने संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर में डिपो के पास चाय की दुकान खोल ली। इस दौरान डिपो में ट्रक मैकेनिक का काम करने वाले रामबहादुर से उसकी मुलाकात हुई। दोनों ने शादी कर ली। शांतिदेवी अपने पति रामबहादुर के साथ ट्रक सुधारने का काम करने लगी। अब शांतिदेवी की पहचान एक कुशल महिला ट्रक मैकेनिक के रूप में है। वह मोटिवेशन के लिए स्कूल और कॉलेजों में भी स्पीच के लिए आमंत्रित की जाती हैं।
शांतिदेवी करीब 20 वर्षों से दिल्ली के ट्रांसपोर्ट नगर के डिपो में ट्रक मैकेनिक का काम कर रही है। वह बड़े से बड़े ट्रक के टायरों को देखते-देखते बदल देती है और इनमें पंक्चर का काम हो या इन्हे कसने या अन्य तकनीकी काम सब शांति के लिए आसान है। लोग शांति देवी को इस कठिन कार्य को करते देख दंग रह जाते हैं।
भारत की पहली महिला ट्रक ड्राइवर शांतिदेवी पर उसके पति रामबहादुर को गर्व है। रामबहादुर बताते हैं कि आज उसकी पत्नी शांति के कार्य की बदौलत ही उन्होंने बच्चों को शिक्षा दिलाई और उनकी शादी की। मकान भी शांति की कमाई से ही बन पाया। कुल मिला कर भारत की पहली महिला ट्रक मैकेनिक उन साधारण महिलाओं और पुरुषों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है जो कठिन कार्य करने से कतराते हैं।
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