जानें,वीआरएल कंपनी के मालिक की कहानी, कैसे खड़ा हुआ 4500 ट्रकों के ट्रांसपोर्ट का कारोबार
कहते हैं जब किसी कार्य को करने का मन में दृढ़ संकल्प हो तो सफलता कदम चूमती है। ऐसे ही मजबूत व्यक्तित्व के धनी हैं वीआरएल कंपनी के मालिक डा. विजय शंकर संकेश्वर और उनकी सफलता की कहानी भी प्रेरणादायक है। एक ट्रक से काम शुरू करके आज वे 4500 ट्रकों से लॉजिस्टिक का कारोबार कर रहे हैं। दुनिया आज उन्हें “ट्रांसपोर्ट सम्राट” के नाम से जानती है।
लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में भारत की जानी-मानी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी वीआरएल के मालिक डॉ. विजय संकेश्वर ने यह शानदार सफलता हासिल करने के लिए कितने जोखिम उठाए, कितनी बाधाओं का सामना किया लेकिन कभी हार नहीं मानी। उन्होंने एक ट्रक से कठिन आर्थिक हालातों में ट्रांसपोर्ट व्यवसाय शुरू किया और उनके मजबूत इरादों के चलते वे इस व्यवसाय की बुलंदियों पर पहुंच गए। यहां ट्रक जंक्शन की इस पोस्ट में हम इस सफल बिजनेसमैन की सफलता की पूरी जानकारी इस कहानी के जरिए दे रहे हैं जो ट्रक व्यवसायियों के लिए प्रेरणा बन सकती है।
कैसे बने इंडस्ट्री टाइकून डॉ. विजय संकेश्वर
वीआरएल के मालिक डॉ. विजय संकेश्वर कैसे एक अनजान व्यवसाय में उतर कर सफलता की सीढिय़ां चढ़ते गए, इसके पीछे उनके जीवन की यह कहानी सभी ट्रक (Truck) व्यवसायियों को प्रेरणा दे सकती है। बता दें कि डा. विजय संकेश्वर, उत्तरी कर्नाटक के एक छोटे से शहर में जन्मे। पढ़ाई के दौरान जब वे 19 वर्ष के थे तो अपने बेटे के बारे में उनके पिता को चिंता होने लगी कि वह आगे चल कर क्या करेगा? दरअसल जब उन्होंने आगे चल कर अपने बेटे की इच्छा जाननी चाही तो वह एक ऐसे बिजनेस में उतरना चाहता था जो अलग तरह का था। यह था ट्रक व्यवसाय। डा. विजय संकेश्वर कहते हैं कि मैने अपने पारिवारिक व्यवसाय के कंफर्ट जोन से निकल कर जोखिम उठाया। यह एक बड़ा जोखिम था। उनके लिए ट्रक लाइन में अपनी किस्मत आजमाना मुश्किल था। पहले उन्होंने एक ट्रक खरीदा। तब उनके कई रिश्तेदारों, परिचितों और यहां तक दोस्तों ने उनका मजाक उड़ाया, अपमानित तक किया। डा. विजय संकेश्वर आगे कहते हैं कि उनके माता-पिता भी नहीं चाहते थे कि वे इस व्यवसाय में जाएं। वे अपने पारिवारिक व्यवसाय में लौटने के लिए कहने लगे। लेकिन उनके अंदर की आग ने उन्हे आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी।
वाहन दुर्घटनाओं से भी नहीं हुए विचलित
ट्रक बिजनेस में एक नये खिलाड़ी से शुरूआत करने वाले डा.विजय संकेश्वर कहते हैं कि उन्होंने इस लाइन में कई बार बड़े जोखिम उठाए। यहां तक कि वाहन दुर्घटनाएं भी हुईं लेकिन इनमें उन्हे फिजीकल तौर पर कोई नुकसान नहीं हुआ। कई ट्रक व्यवसायियों ने उन्हे कहा कि इस लाइन को मैं बदल लूं। मुझे अहसास हुआ कि यदि जोखिम नहीं उठाया तो वह कभी सफलता नहीं मिलने वाली। आखिर उन्होंने तीन साल बाद एक ट्रक और जोड़ लिया। गडग और हुबली के बीच प्वाइंट टू प्वाइंट ऑपरेटिंग। इसके बाद दो ट्रकों के अलावा बिजनेस को बढ़ाने के लिए कुछ और ट्रक किराए पर ले लिए। तब वे 28 वर्ष के हो चुके थे। अपने बिजनेस को विस्तार देने के लिए वे पत्नी और बच्चों को लेकर गडग से हुबली चले गए। उन्हे लगा कि यहां उनका व्यवसाय ज्यादा तेजी से बढ़ेगा।
उधार पैसा लिया, किराए के मकान में रहे
वीआरएल कंपनी के मालिक डा. विजय संकेश्वर की प्रेरणा भरी कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। वे कहते हैं कि गडग से हुबली आकर वे किराए के मकान में रहने लगे। उन्होंने लोगों से काफी पैसा उधार ले लिया। यह समय पर नहीं चुकाया। उनके इस फैसले से उनके पिता काफी आहत हुए। वे एक दिन हुबली आए। उन्हे डर था कि मैं मकान का किराया भी समय पर चुका पा रहा हूं या नहीं। उन्होंने मकान मालिक को एक पोस्टकार्ड दिया जिस पर उनका पता लिखा था। मकान मालिक से कहा कि यदि दो महीने तक किराया नहीं दे सका तो वे उन्हे पोस्टकार्ड जरूर लिखें। सौभाग्य से डा. विजय संकेश्वर समय पर किराया देते रहे। अब उन्होंने अपने ट्रक कारोबार का विकास करना शुरू किया। हुबली में जाने-माने कॉरपोरेट्स और बंगलौर में एफएमसीजी कंपनियों से व्यापार के लिए संपर्क किया। तब उनके पास 8 ट्रक थे। उन्होंने इस व्यवसाय को विजयानंद रोडलाइंस के नाम से एक निजी लिमिटेड कंपनी में बदल दिया।
वीआरएल कंपनी का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज
बता दें कि वीआरएल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में भारत के वाणिज्यिक वाहनों के सबसे बड़े बेड़े के के रूप में हो चुका है। इस कंपनी की स्थापना 1976 में डीआर द्वारा की गई थी। वर्तमान में वीआरएल नेशनल लेवल पर लॉजिस्टिक्स कंपनी के रूप में विकसित है। इसके अंतर्गत 291 यात्री वाहनों सहित 4500 से ज्यादा कमर्शियल वाहन ट्रक्स हैं।
उद्योग रत्न डा. विजय संकेश्वर लोकसभा सदस्य भी रहे
आपको बता दें कि वीआरएल कंपनी मालिक डा.विजय संकेश्वर 11वी, 12वीं और 13वीं लोकसभा में धारवाड़ से मेंबर ऑफ पार्लियामेंट चुने गए। वे कर्नाटक राज्य के विधानमंडल के सदस्य भी रहे। उन्हे इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक स्टडीज,नई दिल्ली ने 1994 में उद्योग रत्न अवार्ड प्रदान किया था। इसके बाद 2007 में आर्यभट्ट अवार्ड, विश्वेश्वरैया मेमोरियल अवार्ड, 2008 में उन्हे ट्रांसपोर्ट सम्राट और 2012 में ट्रांसपोर्ट पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर चुना गया था। अब डा. विजय संकेश्वर के पुत्र आनंद संकेश्वर भी कंपनी को आगे बढ़ा रहे हैं।
ट्रक जंक्शन पर भारत के इस ट्रांसपोर्ट सम्राट डा. विजय संकेश्वर की सफलता की यह कहानी निश्चित तौर पर ट्रक व्यवसायियों सहित अन्य लोगों के भी प्रेरणादायक साबित होगी।
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