Posted On : 06 October, 2023
जिसके मन में कुछ हासिल करने की लगन और विश्वास होता है, वह हर प्रकार की मुश्किलों से लड़कर भी अपनी सफलता तक जरूर पहुंचता है। ऐसा ही उत्तर प्रदेश के वाराणसी में भी देखने को मिला है। साधारण घर से आने वाली 2 लड़कियों ने अपनी मेहनत और लगन से अपने सपने को पूरा कर दिखाया है। वाराणसी की छात्राओं का भारतीय हॉकी टीम में सिलेक्शन हुआ है, जो बहुत ही गर्व की बात है। इनमें पूर्णिमा के पिता किसान है और कोमल के पिता ट्रक ड्राइवर है। आइये ट्रक जंक्शन के इस आर्टिकल में इन छात्राओं के संघर्ष की पूरी कहानी जानें।
वाराणसी के रामेश्वर गांव की रहने वाली कोमल पाल के पिता अभयराज पाल परिवार का खर्च चलाने के लिए मुंबई में ट्रक चलाते हैं, लेकिन घर खर्च नहीं चल पाते थे। जिसके बाद कोमल की मां अपनी बेटी के हॉकी खेलने के शौक को पूरा करने के लिए सिलाई का काम करने लगीं और शायद आज इसका नतीजा है कि अपने मां-बाप की उम्मीदों पर खरी उतरते हुए कोमल ने भारतीय टीम में जगह बनाई है। जानकारी के मुताबिक, कोमल के पिता शादी के पहले से मुंबई में रहकर ट्रक चलाया करते थे। जिसके बाद वह अपनी पत्नी को लेकर मुंबई चले गए। कोमल भी साथ में रहने लगी। इस बीच बच्चों की पढ़ाई के लिए अभयराज पाल ने अपने परिवार को गांव भेज दिया। जहां कोमल का रुझान हॉकी की ओर होने लगा। इसके बाद एक ट्रक ड्राइवर ने अपनी बेटी का खेल देखकर अपना सहयोग करना शुरू कर दिया। पिता ने अपनी बेटी का दाखिला गांव के पास ही विवेक स्पोर्ट्स एकेडमी में कराया। जहां वह हॉकी का प्रशिक्षण प्राप्त करने लगीं। कोमल की हॉकी की जरूरतों को पूरा करने के लिए मां चिंता देवी भी घर में ही सिलाई का काम करने लगीं। वहीं स्पोर्ट्स कॉलेज गोरखपुर में आवेदन करने पर कोमल का चयन हो गया और पिछले वर्ष मणिपुर राष्ट्रीय सब जूनियर हॉकी प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता।
वाराणसी के हरहुआ चक्का की रहने वालीं पूर्णिमा की मां अमरावती ने अपनी बेटी के हॉकी के शौक को पूरा करने के लिए बैंक से लोन लिया और उसी पैसे से पूर्णिमा को हॉकी और जूते खरीदकर दिए। जिसे लेकर वह गोरखपुर स्पोर्ट्स कॉलेज पहुंचीं और आज मां को अपनी बेटी पर नाज है। आपको बता दें, बचपन से ही पूर्णिमा की रुचि खेल में थी और इसकी शुरुआत क्रिकेट से हुई। लगभग 7 से 8 साल की उम्र में पूर्णिमा बच्चों के साथ क्रिकेट खेला करती थी। पूर्णिमा की रुचि को देखते हुए उसकी मां भी उसे प्रोत्साहित करने लगीं। वहीं जब पूर्णिमा 9 साल की हुईं तो उसका रुझान हॉकी की ओर हो गया। इसके बाद परिवारवालों के सहयोग से वह गांव के पास ही एक विवेक एकेडमी में हॉकी का प्रशिक्षण लेने लगीं। इस दौरान जब स्पोर्ट्स कॉलेज में दाखिले के लिए फार्म निकला तो उन्होंने आवेदन कर दिया और चयन भी हो गया। जानकारी के मुताबिक आपको बता दें, पूर्णिमा के पिता कौशलेंद्र यादव पेशे से एक किसान हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना रहने की वजह से पूर्णिमा की मां ने बैंक से 1.25 लाख रुपये का लोन लिया और उन पैसों से पूर्णिमा को हॉकी और जूते खरीदकर गोरखपुर भेजा। यहां पूर्णिमा ने फारवर्ड खिलाड़ी के रूप में खेलना शुरू किया। फिर पिछले साल मणिपुर में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतकर अब अपनी मेहनत के दम पर सब जूनियर भारतीय टीम में जगह बनाने में सफल हुईं है।
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